आज के समय में हर व्यक्ति को कुछ मूलभूत चीजें चाहिए होती हैं जैसे अच्छा खाना, कपड़े और घर। साथ ही हर व्यक्ति Quality Education, Skill Development, Suitable Employment, Stable Health, Rule of Law और Human rights का सम्मान चाहता है। यह सब उसे एक सम्मानित जीवन जीने में मदद करता है। यदि कोई सरकार इन मूलभूत जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती है तो लोग उसके खिलाफ हो जाते हैं।
दोस्तों जब कुछ लोगों को उनकी मूल जरूरतें नहीं मिलती हैं तो वे अपने देश से दूर हो जाते हैं और कभी-कभी वे देश को तोड़ने या हिंसा करने की बात करते हैं। इसका एक उदाहरण है भारत के पूर्वी राज्यों में चल रहा नक्सलवाद जो कई सालों से लोगों को परेशान कर रहा है। तो दोस्तों आज के लेख में हम राष्ट्रवाद के संदर्भ में विकास और उग्रवाद के बीच की बहस को समझेंगे। हम जानेंगे कि आखिर कौन से कारण हैं जो भारत के पूर्वी क्षेत्र को नक्सलवाद का केंद्र बना देते हैं। तो चलिए ज्यादा देर ना करते हुए इस चर्चा को आगे ले जाते हैं।
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नक्सलवाद का इतिहास- History of Naxalism
दोस्तों भारत का नक्सलवाद आंदोलन दुनिया के सबसे लम्बे और सबसे ख़ूनी घरेलू विद्रोहों में से एक है। नक्सलवादी लोग ऐसी अति उग्र विचारधारा को मानते हैं जिसके अनुसार भारतीय सरकार एक आधा गुलाम, जमींदारी और साम्राज्यवादी सरकार है जिसे गिराना ज़रूरी है। नक्सलवादी लोग Far-left radical communist समूहों को कहलाते हैं। जिनका जन्म आजादी के बाद के भारत में हो रहे जमींदारों के शोषण के खिलाफ हुआ। इसलिए इसे Left-wing extremism भी कहा जाता है। दोस्तों यदि हमें यह पता लगाना है कि भारत के कुछ क्षेत्रों में नक्सलवाद कैसे फैला तो हमें इसके इतिहास को जानना होगा।
इसकी शुरुआत 1950 के आखिरी में भारत-नेपाल सीमा के पास वेस्ट बंगाल के एक गाँव नक्सलबाड़ी में आजादी आंदोलन के तरह हुई. इस गाँव के नाम से ही इसका नाम नक्सलवाद आंदोलन पड़ा। चीन में माओ के क्रांति से प्रभावित होकर Charu Majumdar, Kanu Sanyal और Jangal Santhal जैसे आदिवासी नेताओं ने बिना जमीन वाले मजदूरों और किसानों के हक के लिए जमीन का पुनर्वितरण मांगकर हथियार उठा लिए. 1967 में जमींदारों के खिलाफ इसने एक कम्युनिस्ट किसान विद्रोह का रूप धारण कर लिया और इसी आंदोलन ने भारत में नक्सल विद्रोह के बीज बो दिए.
दोस्तों यह संघर्ष शुरू में जमींदारों या साहुकारों के खिलाफ था जो बाद में सरकार के खिलाफ बदल गया। नक्सलबाड़ी नाम के एक गाँव से शुरू हुई यह कहानी आगे चलकर बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में फैल गई और इन राज्यों के नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों को मिलाकर रेड कॉरिडोर कहा गया। इन सभी जगहों पर यह आंदोलन किसानों और आदिवासियों की असंतोष के कारण शुरू हुआ था। कहीं इसका उद्देश्य जमीन का न्यायपूर्ण बांटवारा करना था तो कहीं यह जंगल और आदिवासी कानून के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे एक विशेष विचारधारा का अनुयायी बनकर यह एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा समस्या बन गया।
भारत में नक्सलवाद आंदोलन तीन बड़े चरणों में उभरा। पहला चरण 1960 के अंत से 1973 तक चला। माओ की क्रांतिकारी रणनीति और चीन के सांस्कृतिक क्रांति से प्रेरित होकर नक्सलवादी अपने पहले चरण में वेस्ट बंगाल और आंध्र प्रदेश में ही सीमित रहे। इस दौरान वे किसानों को हथियार देकर जमींदारों की जमीन हड़पते थे और फिर पुलिस और जमींदारों से बचने के लिए हथियारों का सहारा लेते थे। लेकिन इन कार्यों ने भारत के पूर्वी क्षेत्र में जाति, समुदाय और वर्ग के आधार पर राजनीतिक हिंसा को बढ़ाया।
दोस्तों 1969 तक नक्सलवादी लोग चारू मजूमदार के नेतृत्व में CPI-Marxist, Leninist यानी CPI-ML नाम के एक समूह में जुट गए. CPI-ML राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए गोरिला वॉरफेयर की तरकीब अपनाने लगे। कोलकाता पुलिस ने नक्सलवादी नेता चारू मजूमदार को जुलाई 1972 में पकड़ लिया। जिसके कुछ ही दिन बाद पुलिस हिरासत में मजूमदार की मौत हो गई. उसके बाद कोलकाता में पुलिस और सरकारी सैनिकों की बढ़ती संख्या के कारण एक के बाद एक सभी नक्सलवादी नेताओं को गिरफ्तार किया गया।
1973 तक नक्सलवादी लोगों के सभी शक्ति केंद्रों को खत्म कर दिया गया। इस तरह इस चरण में सरकार का योगदान इस क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक हालत को बेहतर करने की बजाय कठोर विद्रोह रोकने का कार्य करने में रहा। अब जब नक्सलवाद को जन्म देने वाले मूल कारणों का सुलझाना नहीं हुआ तो यह बात नक्सलवादी लोगों के लिए और अधिक हिंसा करने और स्थानीय लोगों को अपने पक्ष में लाने का बहाना बन गई.
दोस्तों इसके बाद दूसरा चरण 1970 से 1994 तक चला। इस चरण में यह आंदोलन 40 से ज्यादा अलग-अलग समूहों में बंट गया। लेकिन धीरे-धीरे वे अपने समूहों को एकजुट करके फिर से सक्रिय होने लगे। इस चरण में यह आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और तेलंगाना के दक्षिण-पूर्वी राज्यों में फैला। अब नक्सलवादी विद्रोही लोग जमींदारों को पकड़कर उनसे गाँव वालों के सामने माफी मांगवाते थे और उनसे जबरन लिए गए पैसे वापस करवाते थे।
इस चरण में विद्रोह रोकने के कार्य और भी कड़े हो गए और हिंसा बढ़ती गई. नक्सलवादी राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया। लेकिन हिंसा तब भी जारी रही। इस चरण में सरकार ने विद्रोह रोकने के कार्य को बढ़ाया। इस रणनीति के कारण हिंसक घटनाएँ काफी कम हुई और लगभग 9000 नक्सलवादी लोगों ने हथियार डाल दिए. इसी के कारण कुछ संयमी नक्सलवादी राजनीतिक दलों पर लगे प्रतिबंध भी हटा दिए गए और दूसरा चरण यहाँ समाप्त हुआ।
दोस्तों इसका तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण चरण 2004 से 2015 तक चला। 2005 से 2011 तक हिंसा अपने चरम पर रही और 2014 तक आते-आते हालात कुछ शांत हो गए. इस दौर में हिंसा इसलिए बढ़ी क्योंकि 1990 के मध्य से 2000 के शुरुआत तक टूटे-फूटे नक्सलवादी समूह जैसे कि People’s War Party, Unity और Maoist Communist Center (MCC) ने एक एकजुट फ्रंट People’ s War Group (PGW) बनाया। 2004 में Communist party of India (Maoist) , Leninist, PGW, Maoist Communist Center of India (MCCI) और Communist party of India (Maoist) के 40 और विद्रोही समूहों का मिलन करके विद्रोही लोगों को मजबूत बना दिया।
2005 के 2nd half तक नक्सलवादी हमलों की तीव्रता बाकी घरेलू आतंकवादी और विद्रोही समूहों के मुकाबले काफी ज्यादा हो गई. 2006 से 2007 में यह ट्रेंड और भी तेज हुआ और इस चरण में यह आंदोलन इतने बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैल गया कि उसने जम्मू और कश्मीर और उत्तर-पूर्व जैसे क्षेत्रों में चल रहे विद्रोहों को भी पीछे छोड़ दिया।
अपने चरम के दौरान नक्सलवादी लोग देश के लगभग 200 से भी ज्यादा जिलों पर कब्जा कर रहे थे। 2000 के अंत तक उनका भौगोलिक प्रभाव तो बढ़ता ही गया लेकिन साथ ही उनकी आय लगभग ₹1500 करोड़ तक पहुँच गई. 2010 तक आते-आते नक्सलवादी लोग भारत के 9 राज्यों में सक्रिय थे। जिनमें से सात राज्य वेस्ट बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में उनके मजबूत अड्डे बन गए थे।
Regional Deprivation and extremism
दोस्तों, अब तक हमने यह देखा कि नक्सल आंदोलन कैसे शुरू हुआ और कैसे वह देश के विभिन्न हिस्सों में फैलता गया। अब हम उन बातों पर ध्यान देंगे जो मुख्य रूप से देश के किसी खास हिस्से में इस हिंसा का कारण बनते हैं। दोस्तों इसमें से एक बड़ी बात है आदिवासी लोगों का सरकार से नाराज़ होना और यह अलग-अलग वजहों से होता है। आदिवासी लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए मुख्य रूप से जंगल की चीजों पर निर्भर रहते हैं। लेकिन जंगल की सुरक्षा कानून 1980 के तहत इन चीजों पर से आदिवासी लोगों का हक छीन लिया गया था।
इसका मतलब यह था कि अब वह किसी पेड़ की छाल तक नहीं ले सकते थे, इसके साथ ही इन इलाकों में सामूहिक संपत्ति जैसे कि गाँव के चरागाह, नाले और तालाब यहाँ की अर्थव्यवस्था और स्थानीय समुदायों की जीविका में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन इन राज्यों के कुछ हिस्सों में बढ़ता हुआ औद्योगिकरण इन संपत्तियों को नुकसान पहुँचाता नजर आता है। इसके अलावा इन मुद्दों पर सरकार का भी कमजोर जवाब देखने को मिलता है और जब इन समस्याओं और विवादों का समय पर हल नहीं किया जाता तो वे स्थानीय लोगों को परेशान करते हैं और यहीं से हिंसक मानसिकता की शुरुआत होती है।
इसके साथ ही जैसा कि हम जानते हैं कि भारत के ओड़ीसा और झारखंड जैसे आदिवासी क्षेत्रों में खनिज संसाधनों की बहुतायत है। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि इन क्षेत्रों में सरकार के विकास परियोजनाओं में खनन कार्य और अन्य सरकारी गतिविधियों की वजह से आदिवासी लोगों को अपना घर-बार छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ता है।
ऐसे में उन्हें अपना जीवन दोबारा शुरू करना पड़ता है। इसके कारण इन विस्थापित लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ना तो उनके पास आय का कोई साधन होता है और ना ही रहने के लिए कोई स्थायी जगह। माओवादी लोग ऐसे ही लोगों को ढूँढते हैं और उनकी कमजोरियों का फायदा उठाकर उन्हें सरकार के खिलाफ उकसाते हैं और अपने समूह में शामिल कर लेते हैं।
दोस्तों, माओवादी लोग इन लोगों को हथियार और पैसा देते हैं। Sociologist भी कहते हैं कि पूर्वी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को देश के बाकी हिस्सों की तुलना में पर्याप्त आर्थिक अवसर नहीं मिले हैं। क्योंकि यह लोग अपनी मांगों को चुनाव के जरिए mainstream में नहीं ला पाते हैं। इन क्षेत्रों को लेकर राज्य सरकार का ध्यान विकास से ज्यादा माओवादी समूहों पर हिंसक हमलों के रूप में रहता है। इसके कारण नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा, जागरूकता, बिजली, इंटरनेट और संचार जैसी मौलिक सुविधाएँ लोगों तक नहीं पहुँच पाती हैं।
कई शोधकर्ता यह कहते हैं कि इन सभी मापदंडों पर रेड कॉरिडोर बाकी भारत की तुलना में काफी खराब काम करता है और इन सुविधाओं का न होना इन क्षेत्रों में बाकी विकास परियोजनाओं को भी रोकता है। उदाहरण के लिए इन क्षेत्रों में आज भी ऐसे कई समुदाय हैं जो बाकी राज्य या देश के साथ किसी भी तरह के प्रभावी संचार नेटवर्क से जुड़े नहीं हैं। इस तरह के ढांचे की कमी इन क्षेत्रों में राज्य की पहुँच को कमजोर करती है।
दोस्तों किसी भी कार्यक्रम या योजना की सफलता उसके ठीक से लागू होने और निगरानी पर निर्भर करती है। लेकिन इन दूरदराज के क्षेत्रों में खराब प्रशासन इन योजनाओं का ठीक से लागू होना सुनिश्चित नहीं कर पाता है। एक निगरानी प्रणाली न होने के कारण कई बार इन योजनाओं का दुरुपयोग भी होता है। जिसके कारण ये लाभ लक्षित लोगों तक नहीं पहुँच पाते हैं और माओवादी लोग अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसे ही सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का सहारा लेते हैं।
दोस्तों, इससे हमें यह समझ में आता है कि अगर इस क्षेत्र में माओवाद से निपटना है तो सरकार को ऐसे कड़े कदम उठाने होंगे जो देश में सबके लिए विकास सुनिश्चित कर सकें। इन कदमों को भारत के विकास के बारे में एक समानता के साथ-साथ कुशलता को बढ़ावा देना होगा।
कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि जो संस्थागत तंत्र इस क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए बनाए गए, वे पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं। इन तंत्रों को सफल बनाने के लिए नीति प्रक्रिया को और भी ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की जरूरत है और इस तरह का बदलाव नीति शासन में नवाचार की मांग करता है। एक शोध के अनुसार इसके लिए knowledge, discussion, inclusion, implementation, framework और public awareness जैसे स्तंभों पर काम करने की ज्यादा जरूरत है। अगर इन स्तंभों पर काम किया जाए तो ये भारत की क्षेत्रीय अंतर से लड़ने के लिए बेहतर नीति परिणाम को सहायता कर पाएंगे।
Conclusion
दोस्तों, आज केंद्र और प्रभावित राज्यों के साथ मिलकर काम करते हुए नक्सलवादी हिंसा को काफी कम किया है। इसके कारण ना केवल उन्होंने विद्रोही संगठनों के कई महत्त्वपूर्ण नेताओं को मार दिया, बल्कि 50 साल से भी लंबे समय से चल रहे हिंसक आंदोलन को आज अधिकांश छत्तीसगढ़, झारखंड और ओड़ीसा जैसे राज्यों के कुछ पहाड़ी जिलों तक ही सीमित कर दिया है। विकास और शासन के क्षेत्रों में राज्य की अच्छी कार्यशैली के कारण आज नक्सलवादी लोग उस स्तर पर बढ़ नहीं पाए हैं, जिस तरह उन्होंने अपने चरम काल में किया था।
गृह मंत्रालय की सितंबर 2021 की बैठक के अनुसार माओवादी का भौगोलिक प्रभाव जो 2010 में 10 राज्यों के 96 जिलों में था वह आज घटकर केवल 41 जिलों तक ही रह गया है। इस हिंसा में कमी देखते हुए केंद्र ने 90 में से 20 जिलों और 11 में से एक नक्सल प्रभावित राज्य को सुरक्षा सम्बंधी खर्च के लिए दी जाने वाली केंद्रीय वित्तीय सहायता से हटा दिया है। इसके साथ ही 2012 में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े जिलों के विकास के लिए Aspirational districts program शुरू किया गया।
पिछले एक दशक में Left wing extremism से जुड़े घटनाक्रम में काफी गिरावट आई है। 2009 में जहाँ लगभग 2258 घटनाएँ दर्ज हुई थीं वहीं उसके बाद से लेकर अगस्त 2021 तक केवल 349 घटनाएँ ही हुई हैं। इसी अवधि के दौरान मौतों की संख्या 908 से घटकर 110 तक हो गई है।
दोस्तों, इसके बाद भी आज तक इस समस्या को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सका है। इस बैठक में कुछ ऐसे नए क्षेत्रों को भी पहचाना गया है, जहाँ पर इस समस्या का बढ़ने का डर है। CPI (Maoist) के इस फैलाव को रोकने के लिए आठ जिलों को “districts of concern” की सूची में डाला गया है। इसी बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि कैसे यह असंतोष उन क्षेत्रों में विकास की कमी की वजह से पैदा हुआ है जो आजादी के 70 साल बाद भी वहाँ नहीं पहुँच सका।
तो आज इस उग्रवाद से निपटने के लिए भारत के इन क्षेत्रों का तेजी से विकास करना बहुत जरूरी है। अगर इन क्षेत्रों की मूल समस्याओं को समय पर हल किया जाए तो इस उग्रवाद को भी रोका जा सकता है।
इस बातचीत से हमें यह समझ में आता है कि विकास और आंतरिक सुरक्षा एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं। दोनों ही एक दूसरे पर निर्भर हैं। तो यह एक तरह की खराब चक्र है। जहाँ एक तरफ विकास और प्रगति की कमी इस उग्रवाद को बढ़ाती है, वहीं दूसरी तरफ इस उग्रवाद से होने वाली हिंसा विकास के अवसरों को कम कर देती है। इसलिए इस मुद्दे को हल करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि देश में असमान विकास से पैदा हुए अंतर को समय पर दूर किया जाए. केवल तभी इस समस्या को जड़ से मिटाया जा सकता है।
(हमें आशा है कि आपको यह लेख पढ़ने में आनंद आया होगा। यदि आपको यह लेख पढ़ने में आनंद आया है, तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ Share करें। इस लेख को पढ़ने के लिए अपना बहुमूल्य समय निकालने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। यदि आपके कोई सुझाव या प्रश्न हों तो कृपया हमसे संपर्क करें।)